Wednesday, May 18, 2011

woh raat


    बात बहुत पुरानी नहीं है. पर कल की भी नहीं है. लगभग दो साल होने को हैं, पर इतने गहरे से मेरे जेहन पर छाई रहती है कि लगता ही नहीं कि इतने दिन बीत चुके हैं उस घटना को. वो मेरी जिंदगी की सबसे रोमांचक घटना है बल्कि कहें तो मेरा पहला भुतहा अनुभव है. आमतौर पर भुतहा घटनाएँ आदमी पर बुरा प्रभाव छोड़ती हैं पर मेरे अनुभव ने मुझे मेरी जिंदगी का सबसे यादगार लमहा दिया है. ऐसा नहीं है कि मुझे तब डर नहीं लगा था, बुरी तरह डर गया था मैं. आज भी सिहरन हो जाती है जब मैं याद करता हूँ अकेले में वो घटना, खासकर रात में. इतना पसंद होने के बावजूद मैं कभी याद नहीं करना चाहता उस रात की बात को.
2009 की बात है. फरवरी का महीना था. मेरे पापा तब मैजिस्ट्रेट के पद पर ट्रांसफर होकर नवादा जिले (बिहार) में गये थे. जाते के साथ उन्होंने अपने समकक्ष साथी से चार्ज ले लिया. पर डेरा तुरत खाली नहीं हो सकता था. इसलिए हमारे रहने की व्यवस्था सरकारी गेस्ट हाउस में की गई. मैं पहली ही बार गया था वहाँ. दो मंजिले का बड़ा सा लंबा सा मकान है. नीचे के मंजिल पर बड़ा सा डाइनिंग रूम है. फिर साथ में लगे हुए कमरे हैं. ऊपर की मंजिल पर केवल कमरे हैं. सामने एक बड़ा सा अहाता है जिसमें पेड़- पौधे और फूल- पत्तियाँ लगी हुई हैं. पूरे कैंपस को घेरे हुए ईंटों की चहारदीवारी है.
हमें ऊपर की मंजिल पर पहला ही कमरा मिला था. यह ऊपर आने वाली सीढियों के बगल में था. कमरा एक ही था पर काफी बड़ा था. ठीक बीच में एक डबल पलंग लगा था. एक तरफ दो सिंगल सोफे और एक टेबल रखा हुआ था. चारों तरफ बड़ी- बड़ी खिड़कियाँ थीं जिनपर लोहे के ग्रिल लगे हुए थे. खिड़कियों के ही आकार के लकड़ी के फ्रेमों में जालियाँ लगी हुई थीं जिन्हें जरूरत पर उठाया और लगाया जा सकता था. मैंने खिड़की के पास जाकर देखा. पीछे कुछ पेड़ लगे हुए थे. फरवरी का महीना था इसलिए पेड़ अपनी पत्तियाँ गिरा रहे थे. जमीन पर चारों तरफ पीले सूखे हुए पत्ते बिखरे पड़े थे. पेड़ो के तुरंत बाद पीछे की बाउंड्री थी. उसके बाद मकानों की कतार थी जिनका पीछे का हिस्सा नजर आ रहा था. पुराने से खंडहर जैसे मकान थे. उनके पीछे काफी कबाड़ा और गंदगी जमा थी. खैर, हमारा कमरा काफी आरामदेह लग रहा था. बस कमी थी तो सिर्फ बिजली की. आते ही पता चल गया कि बिजली यहाँ कभी- कभार ही रहती है. पापा ने कहा कि रात में जलाने के लिए मोमबत्ती रख लेना होगा. फिर पापा तैयार होकर आफिस के लिए निकल गए. मैं समय काटने लगा. दोपहर तीन बजे के बाद मुझे अपनी तबियत कुछ खराब सी लगी. फिर मुझे पसीना आने लगा और ठंड लगने लगी. कमरे में ओढ़ने के लिए कुछ भी नहीं था. मैं बेड पर लेट गया और अपने हाथों को सीने पर बांध कर खुद को गर्म रखने की कोशिश करने लगा. संयोग से उसी समय पापा आ गये. उन्होंने तुरंत नीचे से कंबल मंगाकर मुझे ओढ़ाया. फिर कुछ दवाईयाँ मंगाईं. पर मैंने कहा कि आज भर देख लेते हैं नहीं ठीक हुआ तो कल से दवाई खाएंगे. दरअसल मैं दवाईयाँ नहीं खाना चाहता. मेरा विश्वास है कि शरीर को खुद थोड़ा मौका देना चाहिए कि वह अपने को ठीक कर सके. पटना से हमलोग बाइक से गए थे और मुझे लग रहा था कि रास्ते की थकावट से ही मैं बीमार पड़ा हूँ. पापा का भी यही विचार था इसीलिए उन्होंने भी दवाई खाने के लिए जोर नहीं दिया.
रात हुई. हमने होटल से खाना मंगाया. मैं कुछ बेहतर महसूस कर रहा था. ठंड लगनी बंद हो गई पर हल्का बुखार था. मैंने थोड़ा ही खाया. फिर हम सोने चले. हमें एक ही बेड पर सोना था. मैं खिड़की वाली तरफ सोया. हल्की हल्की हवा चल रही थी. खुशकिस्मती से बिजली भी थी और पंखा चल रहा था. जल्दी ही मुझे नींद आ गई.
रात में किसी समय मेरी नींद टूटी. बिजली चली गई थी. एकदम सन्नाटा था. हवा भी चलनी बंद हो गई थी. मैंने अंदाजा लगाया दो ढाई जरूर बजते होंगे. मैंने खिड़की की तरफ देखा. उफ्, इतनी बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ थीं कि लगता था मानो उस तरफ दीवार हो ही नहीं. मेरा बुखार उतर गया था और मैं एक अजीब सी फ्रेशनेस महसूस कर रहा था. पर चारो तरफ पसरा हुआ सन्नाटा अजीब लग रहा था. मैं उठकर खिड़की तक गया. खिड़की से बाहर के खंडहर नुमा मकानों ने मेरे पीठ में ना जाने क्यों सिहरन पैदा कर दी. भूत-प्रेत जैसी चीजों में तो मैं विश्वास करता नहीं. फिर क्या बात है. मैं क्यों डर रहा हूँ. मैं हिम्मत बनाकर थोड़ी देर और वहाँ खड़ा रहा फिर आकर बेड पर लेट गया. मैंने देखा कि मेरी थ्योरी और प्रैक्टिकल नालेज में अंतर है. कहने को तो मैं विज्ञान का विद्यार्थी हूँ और इसका गरूर भी है कि किसी तरह के अंधविश्वास को मैं नहीं मानता, तो आज मुझे सिहरन क्यों हो रही है और क्यों म्रेरे मन में डरावने विचार आ रहे हैं. शायद बचपन में मेरे अंदर जो डरावने विचार घर कर गए थे वे ही आज उभर कर सामने आ रहे हैं. नींद जो उड़ गई थी, यूँ सोचते-सोचते फिर से आने लगी थी. तभी मुझे हल्की खनखनाहट सुनाई दी. मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. थोड़ी देर में वह आवाज फिर सुनाई दी और इस बार मैं पहचान सकता था कि यह पायल की आवाज है जो खिड़की के पार पेड़ों के पास से आ रही हैं. आवाज थोड़ी थोड़ी देर पर आ रही थी मानो कोई चल रहा हो फिर रूक जा रहा हो फिर चल रहा हो. अब तो मेरी हालत खराब हो गई. मैंने पापा की तरफ देखा. वे निर्विघ्न सोए जा रहे थे. थोड़ी देर में आवाज फिर आई जैसे कोई पीछे की जगह में चल रहा हो. मेरे मन में रोमांच हो आया. अपने गाँव जाता हूँ या मामा के घर, तो अक्सर सुनता हूँ कि फलाँ का भूत खेतों में टहल रहा था, घर के पिछवाड़े टहल रहा था. मैं इन बातों को मजाक में उड़ा देता हूँ. मैंने सोचा कहीं वे बातें सच ना होती हों, भला इतनी रात को इधर कौन टहल रहा है. बचपन में मैंने बहुत सारी भुतहा कामिक्स भी पढ़ी थीं और तब मैं बहुत डर जाया करता था. आज मुझे सब कुछ याद आने लगा. यह सोचकर एक बार फिर सिहरन दौड़ गई कि कहीं नीचे सच में कोई भूत-वूत हुआ और मेरी खिड़की पर खड़ा हो गया तो...बाप रे. फिर मैंने खुद को हिम्मत बंधाया. कम से कम चल कर देख तो लो. पर जल्दी ही हिम्मत जवाब दे गई. अगर वाकई वहाँ कोई भूत हुआ तो, मैं कैसे सामना करूँगा उसका. वह आवाज अब बंद हो गई थी. मैं जबर्दस्ती सोने की कोशिश करने लगा. मिनट भर ही बीता होगा कि आवाज फिर आई. इस बार मुझे अहसास हुआ कि कोई औरत चल रही है. तुरंत मुझे भूतनियाँ और चुड़ैलें याद आने लगीं. अब मुझे कौतूहल हुआ कि किसी तरह एक बार देखा जाय. मैं धीरे से उठा और खिड़की की तरफ बढ़ा. मुझे अहसास हुआ कि सन्नाटा और भी गहरा हो गया है. मैं खिड़की के पास पहुँच गया और नीचे पेड़ों के पास ताकने लगा. आवाज अब बंद हो गई थी. मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया क्योंकि घुप्प अंधेरा था. आसमान में चाँद नहीं था और तारों की रौशनी काफी नहीं थी. फिर भी मैं थोड़ी देर आँखें फाड़-फाड़कर देखने की कोशिश करता रहा. धीरे-धीरे मेरी हिम्मत भी वापस आ गई कि चलो कुछ नहीं था. यह सोचते हुए कि वह आवाज मेरे मन का वहम होगी, मैं कमरे की तरफ पलटा और तभी मेरी आँखों ने वह देखा जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. एक बहुत ही खूबसूरत औरत जिसने सफेद रंग की साड़ी पहन रखी थी, मुझसे दो कदमों की दूरी पर खड़ी मेरी तरफ देख रही थी. उसका चेहरा दुधिया गोरा था और आँखों की पुतलियाँ  गुलाबी रंग की थीं. उसकी उम्र 25 से 30 के बीच की होगी और मुझे याद नहीं कि मैंने उससे खूबसूरत लड़की आजतक देखी है. उसने मुझसे पूछा, उसके बोलते ही हवा में एक खनक सी तैर गई, मुझे ढूंढ रहे हो?” मेरी तो जबान ही चिपक गई. मेरे मुँह से बस आँ.. ह.. ह.. ही निकला. वह मेरी तरफ देखकर हल्के से मुस्कुराई और गायब हो गई. यह सब बस 5 सेकंड में ही हो गया होगा. उसके जाते ही वातावरण में एक उदासी-सी फैल गई. मैं वहीं जड़ हो गया. फिर किसी तरह खुद को घसीटता हुआ बेड तक पहुँचा और लेट गया. जल्दी ही मुझे नींद आ गई.
सुबह मैं फिर से बुखार में तप रहा था.